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अख़लाक़ अहमद आहन

1974 | दिल्ली, भारत

शोधकर्ता और शायर, अपनी नज़्म "सोचने पे पहरा है" के लिए मशहूर/ प्रोफ़ेसर जेएनयू

शोधकर्ता और शायर, अपनी नज़्म "सोचने पे पहरा है" के लिए मशहूर/ प्रोफ़ेसर जेएनयू

अख़लाक़ अहमद आहन

ग़ज़ल 8

नज़्म 6

अशआर 7

ये कैसी जगह है कि दिल खो रहा है

बयाबाँ है सहरा है गुलशन है क्या है

सितारों की गर्दिश दिलों का बिछड़ना

ये कैसे ख़ुदा की है कैसी ख़ुदाई

वो जादू अदाएँ अदाओं में जादू

ये पहुँचाएँ हम को फ़ना से बक़ा तक

तिरे फ़िराक़ में हम ने बहाए अश्क-ए-जिगर

ये सब ने चाहा मगर आए तो लहू आए

राह-ए-हयात में मिली एक पल ख़ुशी

ग़म का ये बोझ दोश पे सामान सा रहा

क़ितआ 3

 

पुस्तकें 13

वीडियो 3

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

अख़लाक़ अहमद आहन

अकेले अकेले ही पा ली रिहाई

अख़लाक़ अहमद आहन

तिरी आश्नाई से तेरी रज़ा तक

अख़लाक़ अहमद आहन

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