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फ़हमी बदायूनी

1952 - 2024 | बदायूँ, भारत

मानूस मौज़ूआत और आम जज़्बों में नए तख़लीक़ी पहलू तलाश करने वाले और आम लफ़्ज़ों में गहरे मानी का इज़हार करने वाले शायर जिन्होंने इक्कीसवीं सदी के पहले अशरे में बेपनाह मक़बूलियत हासिल की

मानूस मौज़ूआत और आम जज़्बों में नए तख़लीक़ी पहलू तलाश करने वाले और आम लफ़्ज़ों में गहरे मानी का इज़हार करने वाले शायर जिन्होंने इक्कीसवीं सदी के पहले अशरे में बेपनाह मक़बूलियत हासिल की

फ़हमी बदायूनी

ग़ज़ल 111

अशआर 36

पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा

कितना आसान था इलाज मिरा

मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा

और अपने पते पे भेज दिया

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काश वो रास्ते में मिल जाए

मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है

परेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के

वफ़ा करने की नौबत गई है

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ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी

डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में

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चित्र शायरी 2

 

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