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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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कुमार विश्वास

1970 | दिल्ली, भारत

कुमार विश्वास

ग़ज़ल 14

अशआर 10

अपने ही आप से इस तरह हुए हैं रुख़्सत

साँस को छोड़ दिया जिस सम्त भी जाना चाहे

आदमी होना ख़ुदा होने से बेहतर काम है

ख़ुद ही ख़ुद के ख़्वाब की ताबीर बन कर देख ले

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कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है

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जिस्म चादर सा बिछ गया होगा

रूह सिलवट हटा रही होगी

मिरा ख़याल तिरी चुप्पियों को आता है

तिरा ख़याल मिरी हिचकियों को आता है

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