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मंसूर उस्मानी

1954 | मुरादाबाद, भारत

मंसूर उस्मानी के शेर

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जिस सदी में वफ़ा का चलन ही नहीं

हम बनाए गए उस सदी के लिए

वक़्त होता है बेवफ़ा यारो

आदमी बेवफ़ा नहीं होता

जहाँ जहाँ कोई उर्दू ज़बान बोलता है

वहीं वहीं मिरा हिन्दोस्तान बोलता है

जो फाँस चुभ रही है दिलों में वो तू निकाल

जो पाँव में चुभी थी उसे हम निकाल आए

हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए

लगता है जैसे हम किसी मेले में खो गए

जिस को बचाए रखने में अज्दाद बिक गए

हम ने उसी हवेली को नीलाम कर दिया

अपनी तारीफ़ सुनी है तो ये सच भी सुन ले

तुझ से अच्छा तिरा किरदार नहीं हो सकता

आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए

बरसात के मौसम में सितारे निकल आए

इस शहर में चलती है हवा और तरह की

जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की

शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम

'मंसूर' माँगेंगे दुआ और तरह की

मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए

शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में

ये अलग बात कि अल्फ़ाज़ हैं मेरे लेकिन

सच तो बस ये है कि तेरी ही सदा है मुझ में

ख़ुदा के नाम पे क्या क्या फ़रेब देते हैं

ज़माना-साज़ ये रहबर भी मैं भी दुनिया भी

ख़ुशबू से किस ज़बान में बातें करेंगे लोग

महफ़िल में ये सवाल तुझे देख कर हुआ

हम ने कुछ गीत लिखे हैं जो सुनाना हैं तुम्हें

तुम कभी बज़्म सजाना तो ख़बर कर देना

ख़ुशबू का क़ाफ़िला ये बहारों का सिलसिला

पहुँचा है शहर तक तो मिरे घर भी आएगा

पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया

फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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