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रद करें डाउनलोड शेर

आहट पर शेर

प्रेम में हिज्र-ओ-विसाल

(विरह और मिलन) के गीत सदियों से गाए जाते हैं । उर्दू शायरी में प्रेम के इस संदर्भ को आहट जैसे लफ़्ज़ के माध्यम से बड़ी ख़ूब-सूरती के साथ पेश किया गया है । असल में इस लफ़्ज़ के इर्द-गिर्द महबूब के आने का धोका, उम्मीद और इसी तरह के दूसरे तजरबे को उर्दू शायरी बयान करती आई है। प्रेम के इस तजरबे की व्याख्या में आहट को उर्दू शायरी ने और किस-किस तरह से पेश किया है उसकी एक झलक आपको यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में मिलेगी ।

ये ज़ुल्फ़-बर-दोश कौन आया ये किस की आहट से गुल खिले हैं

महक रही है फ़ज़ा-ए-हस्ती तमाम आलम बहार सा है

साग़र सिद्दीक़ी

दिल पर दस्तक देने कौन निकला है

किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

गुलज़ार

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं

सूरज डूब के मेरे घर में निकला था

ज़ेहरा निगाह

जिसे आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ

उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है

जावेद नसीमी

दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की

धूप-भरे सन्नाटे में आवाज़ सुनी है छाँव की

हम्माद नियाज़ी

कोई आवाज़ आहट कोई हलचल है

ऐसी ख़ामोशी से गुज़रे तो गुज़र जाएँगे

अलीना इतरत

कोई हलचल है आहट सदा है कोई

दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई

ख़ुर्शीद अहमद जामी

ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग

आहट हुई तो चाँद दरीचे में गया

अज़हर इनायती

पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया

फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो

मंसूर उस्मानी

इस अँधेरे में इक गाम भी रुकना यारो

अब तो इक दूसरे की आहटें काम आएँगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हर लहज़ा उस के पाँव की आहट पे कान रख

दरवाज़े तक जो आया है अंदर भी आएगा

सलीम शाहिद

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ चौंक

इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है

अख़्तर होशियारपुरी

कौन आएगा यहाँ कोई आया होगा

मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

कैफ़ भोपाली

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी

कोई आहट हो दर पर मिरे जब तू आए

बशीर बद्र

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो

जाँ निसार अख़्तर

कोई दस्तक कोई आहट सदा है कोई

दूर तक रूह में फैला हुआ सन्नाटा है

वसीम मलिक

पलट जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से

गुदाज़ लम्हों की बे-ख़्वाब आहटों से रूठ

इरफ़ान सिद्दीक़ी

आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ

हम ने उस राह से औरों को गुज़रने दिया

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो

लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है

भारत भूषण पन्त

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ात नहीं की

लफ़्ज़ों ने कई दिन से कोई बात नहीं की

जावेद नासिर

किसी आहट में आहट के सिवा कुछ भी नहीं अब

किसी सूरत में सूरत के सिवा क्या रह गया है

इरफ़ान सत्तार

नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ

जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए

शहज़ाद अहमद

आहटें सुन रहा हूँ यादों की

आज भी अपने इंतिज़ार में गुम

रसा चुग़ताई

जब ज़रा रात हुई और मह अंजुम आए

बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए

असद भोपाली

अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं

किस की दुनिया में गया हूँ मैं

नोमान शौक़

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