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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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क़ासिम याक़ूब

लेख 1

 

अशआर 4

क्या हो सके हिसाब कि जब आगही कहे

अब तक तो राएगानी में सारा सफ़र किया

ये क्या कि बैठा है दरिया किनार-ए-दरिया पर

मैं आज बहता हुआ जा रहा हूँ पानी में

ये झाँक लेती है अंदर से आरज़ू-ख़ाना

हवा का क़द मिरी दीवार से ज़ियादा है

दर-ए-इम्कान की दस्तक मुझे भेजी गई है

मेरी क़िस्मत में तो मौजूद की दौलत नहीं है

ग़ज़ल 15

नज़्म 12

पुस्तकें 19

ऑडियो 11

एक कत्बे की तलाश में

ख़्वाब-कदों से वापसी

चेहरे की गर्द

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"इस्लामाबाद" के और शायर

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