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रईस फ़रोग़

1926 - 1982 | कराची, पाकिस्तान

नई ग़ज़ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में विख्यात।

नई ग़ज़ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में विख्यात।

रईस फ़रोग़

ग़ज़ल 32

नज़्म 32

अशआर 9

लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं

इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं

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मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'

एक अंधेरा साथ रहा है रौशनियों के हुजूम लिए

मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप

वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं

हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है

आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते

अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन

मुझ में रू-पोश जो इक शख़्स है मर जाएगा

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पुस्तकें 2

 

वीडियो 3

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

रईस फ़रोग़

ऊँची ऊँची शहनाई है

रईस फ़रोग़

किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ

रईस फ़रोग़

"कराची" के और शायर

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