सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल 9
नज़्म 6
अशआर 15
कुछ मह-जबीं लिबास के फैशन की दौड़ में
पाबंदी-ए-लिबास से आगे निकल गए
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राज़-ओ-नियाज़ में भी अकड़-फ़ूँ नहीं गई
वो ख़त भी लिख रहा है तो चालान की तरह
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'शाहिद'-साहिब कहलाते हैं मिस्टर भी मौलाना भी
हज़रत दो किरदारों वाले हेरा-फेरी करते हैं
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