aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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शाहिद लतीफ़

1967 | मुंबई, भारत

शाहिद लतीफ़

ग़ज़ल 10

अशआर 3

रात ही के दामन में चाँद भी हैं तारे भी

रात ही की क़िस्मत है बे-चराग़ होना भी

कोई लहजा कोई जुमला कोई चेहरा निकल आया

पुराने ताक़ के सामान से क्या क्या निकल आया

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शरीफ़ लोग कहाँ जाएँ क्या करें आख़िर

ज़मीं चीख़ती फिरती है आसमाँ चुप-चाप

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