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उर्दू के 100 श्रेष्ठ और लोकप्रिय उद्धरण

उर्दू शायरों, अदीबों

और लेखकों ने बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो हमेशा पाठकों के मन को नई रोशनी और विचारों को नई ऊर्जा देता रहेगा। यहाँ हम आपके लिए कुछ ऐसे ही लेखों से 100 श्रेष्ठ और चुनिंदा कथनों और उद्धरणों को पेश कर रहे हैं जो सदैव आपको याद रहेंगे और जीवन के विभिन्न चरणों में आपकी सोच और विचार को नई दिशा प्रदान करेंगे।

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दुनिया में जितनी लानतें हैं, भूक उनकी माँ है।

सआदत हसन मंटो

ग़ुस्सा जितना कम होगा उस की जगह उदासी लेती जाएगी।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

हर हसीन चीज़ इन्सान के दिल में अपनी वक़्अत पैदा कर देती है। ख़्वाह इन्सान ग़ैर-तरबियत-याफ़्ता ही क्यों ना हो?

सआदत हसन मंटो

शाइ'री का आला-तरीन फ़र्ज़ इन्सान को बेहतर बनाना है।

प्रेमचंद

अच्छे उस्ताद के अंदर एक बच्चा बैठा होता है जो हाथ उठा-उठा कर और सर हिला-हिला कर बताता जाता कि बात समझ में आई कि नहीं।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

क़ौमों को जंगें तबाह नहीं करतीं। कौमें उस वक़्त तबाह होती हैं, जब जंग के मक़ासिद बदल जाते हैं।

इन्तिज़ार हुसैन

हमें हुस्न का मेयार तब्दील करना होगा। अभी तक उसका मेयार अमीराना और ऐश परवराना था।

प्रेमचंद

कहते हैं सिगरेट के दूसरे सिरे पर जो राख होती है दर-अस्ल वो पीने वाले की होती है।

मोहम्मद यूनुस बट

आज का लिखने वाला ग़ालिब और मीर नहीं बन सकता। वो शायराना अज़्मत और मक़्बूलियत उसका मुक़द्दर नहीं है। इसलिए कि वह एक बहरे, गूँगे, अंधे मुआशरे में पैदा हुआ है।

इन्तिज़ार हुसैन

जो चीज़ मसर्रत-बख़्श नहीं हो सकती, वह हसीन नहीं हो सकती।

प्रेमचंद

सोज़-ओ-गुदाज़ में जब पुख़्तगी जाती है तो ग़म, ग़म नहीं रहता बल्कि एक रुहानी संजीदगी में बदल जाता है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

अदब की बेहतरीन तारीफ़ तन्क़ीद-ए-हयात है। अदब को हमारी ज़िंदगी पर तब्सेरा करना चाहिए।

प्रेमचंद

तन्हाई का एहसास अगर बीमारी बन जाये तो उसी तरह आरज़ी है जैसे मौत का ख़ौफ़।

सय्यद एहतिशाम हुसैन

जो मुआ'शरा अपने आपको जानना नहीं चाहता वो अदीब को कैसे जानेगा। जिन्हें अपने ज़मीर की आवाज़ सुनाई नहीं देती उन्हें अदीब की आवाज़ भी सुनाई नहीं दे सकती।

इन्तिज़ार हुसैन

ग़ज़ल हमारी सारी शायरी नहीं है, मगर हमारी शायरी का इत्र ज़रूर है।

आल-ए-अहमद सुरूर

उर्दू शायरी का पस-मंज़र पूरी ज़िंदगी है।

सय्यद एहतिशाम हुसैन

ताज महल उसी बावर्ची के ज़माने में तैयार हो सकता था जो एक चने से साठ खाने तैयार कर सकता था।

इन्तिज़ार हुसैन

दर-अस्ल शादी एक लफ़्ज़ नहीं पूरा फ़िक़्रा है।

शफ़ीक़ुर्रहमान

लफ़्ज़ों की जंग में फ़तह किसी भी फ़रीक़ की हो, शहीद सिर्फ़ सच्चाई होती है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

ज़िंदगी के ख़ारिजी मसाइल का हल शायरी नहीं, लेकिन वो दाख़िली मसाइल का हल ज़रूर है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

अदब इंक़लाब नहीं लाता बल्कि इंक़लाब के लिए ज़हन को बेदार करता है।

आल-ए-अहमद सुरूर

हर मतरूक (अप्रचलित) लफ़्ज़ एक गुमशुदा शहर है और हर मतरूक उस्लूब-ए-बयान (शैली) एक छोड़ा हुआ इलाक़ा।

इन्तिज़ार हुसैन

ग़म का भी एक तरबिया पहलू होता है और निशात का भी एक अलमिया पहलू होता है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

अफ़्साने का मैं तसव्वुर ही यूँ करता हूँ जैसे वो फुलवारी है, जो ज़मीन से उगती है।

इन्तिज़ार हुसैन

क़दीमी (प्राचीन) समाज में अफ़्साना होता था, अफ़्साना-निगार नहीं होते थे।

इन्तिज़ार हुसैन

आर्ट बे-नफ़्सेही ज़िंदगी की जुस्तजू है।

मोहम्मद हसन असकरी

फ़न की वजह से फ़न्कार अज़ीज़ और मोहतरम होना चाहिए। फ़न्कार की वजह से फ़न नहीं।

आल-ए-अहमद सुरूर

फ़सादात के मुतअ'ल्लिक़ जितना भी लिखा गया है उसमें अगर कोई चीज़ इंसानी दस्तावेज़ कहलाने की मुस्तहिक़ है तो मंटो के अफ़साने हैं।

मोहम्मद हसन असकरी

क़ौम और क़ौमी ज़िंदगी मिट रही है और हम हैं कि हिन्दी, हिन्दी और उर्दू, उर्दू किए जा रहे हैं।

फ़िराक़ गोरखपुरी

हम कितने और किस क़िस्म के अल्फ़ाज़ पर क़ाबू हासिल कर सकते हैं, इसका इंहिसार इस बात पर है कि हमें ज़िंदगी से रब्त कितना है।

मोहम्मद हसन असकरी

सरमाया-दार का गुनाह उसी तरह ख़ूबसूरत होता है, जैसे उसकी कोठी का मेन गेट ख़ूबसूरत होता है।

फ़िक्र तौंसवी

ज़माने की क़सम आज का लिखने वाला ख़सारे में है और बे-शक अदब की नजात इसी ख़सारे में है। ये ख़सारा हमारी अदबी रिवायत की मुक़द्दस अमानत है।

इन्तिज़ार हुसैन

अगर इताअत पर ज़ब्त-ए-नफ़्स का एहतिसाब जारी ना रहे तो ख़ुदी का मुतालशी ख़तरनाक रास्तों पर जा सकता है।

सय्यद एहतिशाम हुसैन

ज़बानें मुर्दा हो जाती हैं, लेकिन उनके अल्फ़ाज़ और मुहावरे, अलामात और इस्तिआ'रात नई ज़बानों में दाख़िल हो कर उनका जुज़ बन जाते हैं।

सय्यद सिब्ते हसन

अदब में नुक़्ता-ए-नज़र का मस्अला मेरे लिए दीन की सी हैसियत रखता है।

आसिफ़ फर्ऱुखी

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