aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آپی"
वाली आसी
1939 - 2002
शायर
आसी ग़ाज़ीपुरी
1834 - 1917
आसी उल्दनी
1893 - 1946
आसी रामनगरी
आसी आरवी
born.1921
आसी झांसवी
अब्दुल समद आसी
born.1940
अब्दुल अलीम आसि
1834 - 1921
अब्दुश्शुकूर आसी
क़मर आसी
born.1987
हबीब किनख्वाबवाला
एम. आई. साजिद
born.1946
लेखक
अजीतेंद्र आज़ी तमाम
born.1994
मोहम्मद याक़ूब आसी
born.1953
याक़ूब अली आसी
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों सेसो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
ये बात समझ में आई नहींऔर अम्मी ने समझाई नहीं
और आदमी ही चोर है और आपी थांग हैहै छीना झपटी और बाँग ताँग है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलोधड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
“मैंने दसवीं तक कॉन्वेंट में तालीम पाई है सर... मुझे उर्दू नहीं आती।” “सुबकी के तो मा’नी आते ही होंगे?” ये सवाल पूछ कर प्रोफ़ेसर समदानी ख़ुद बहुत महज़ूज़ हुआ। लड़कों के छत्ते में दबे क़हक़हों की भनभनाहट उठी।...
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
आपीآپی
myself
Urdu Ghazal Ka Tareekhi Irtiqa
ग़ुलाम आसी रशीदी
शायरी तन्क़ीद
Aap Beeti Allama Iqbal
डॉ. ख़ालिद नदीम
आत्मकथा
Meer Ki Aap Beeti
मीर तक़ी मीर
Aap Se Kya Parda
इब्न-ए-इंशा
मज़ामीन / लेख
Aap Musafir Aap Hi Manzil
मोमिन इक़बाल उस्मान
अशआर
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
Mughalia Saltanat Ka Urooj-o-Zawal
आर.पी.त्रिपाठी
भारत का इतिहास
आप बीती
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खां
Jis Rizq Se Aati Ho Parwaz Mein Kotahi
मोहम्मद अय्यूब ख़ाँ
घुंगरू टूट गए
क़तील शिफ़ाई
Aap Ka Saadat Hasan Manto
सआदत हसन मंटो
पत्र
Aap Beeti
अब्दुल माजिद दरियाबादी
Mukammal Sharh-e-Kalam-e-Ghalib
व्याख्या
Talash-e-Haq
महात्मा गाँधी
Mukammal Sharah-e-Deewan-e-Ghalib
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
मरयम के ख़याल में सारी दुनिया में बस तीन ही शहर थे। मक्का, मदीना और गंज बासौदा। मगर ये तीन तो हमारा आपका हिसाब है, मरयम के हिसाब से मक्का, मदीना एक ही शहर था। अपने हुजूर का शहर। मक्के-मदीने सरीप में उनके हुजूर थे और गंज बासौदे में उनका...
बात कुछ दिल की हमारे तो न सुलझी हम सेआपी ख़ुश होवे है फिर आप ही घबराता है
बीबी रो-रो कर हल्कान हो रही थी। आँसू बे-रोक-टोक गालों पर निकल खड़े हुए थे। “मुझे कोई ख़ुशी रास नहीं आती। मेरा नसीब ही ऐसा है। जो ख़ुशी मिलती है, ऐसी मिलती है कि गोया कोका-कोला की बोतल में रेत मिला दी हो किसी ने।”...
زمانہ ایک رنگ پر نہیں رہتا۔ 1857ء سے قبل ہی ان کا ملین فن میں سے بہت سے تو ملک عدم کو سدھارے، جو بچے کھچے رہ گئے ان کو غدر کے طوفان نے تتر بتر کر دیا جس کو جہاں کچھ سہارا ملا وہیں کا ہو رہا۔ دہلی برباد...
आपी कहा करती थी, सुनहरे, समय समय की बात होती है। हर समय का अपना रंग होता है, अपना असर होता है। अपने समय पहचान, सुनहरे। अपने समय से बाहर न निकल। जो निकली तो भटक जाएगी। अब समझ में आई आपी की बात। जब समझ लेती तो रस्ते से...
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
दिन-भर काम करने के बाद, जब बूढ़ा रहमान घर पहुँचा तो भूक उसे बहुत सता रही थी। “जीना की माँ, जीना की माँ।” उसने चिल्लाते हुए कहा, “खाना निकाल दे बस झट से। बुढ़िया उस वक़्त अपने हाथ कपड़ों लत्तों में गीले किए बैठी थी और पेशतर इसके कि वो...
फिर तीसरी बार ऐसे हुआ। इससे पहले भी दोबार और ऐसे हुआ था... बिल्कुल ऐसे। जब मेरा बायां पांव बाँस की सीढ़ी के आख़िरी डंडे पर था और मेरा दायाँ पैर सेहन की कच्ची मिट्टी से छः इंच ऊंचा था तो पीछे से माँ ने मेरे बाल ऐसे पकड़े जैसे...
یہ دعویٰ درست ہی ہوگا، اس لیے کہ اگر وہ واقعی دریائے کاویری کے اس پار کھڑی تھی تو اس کی دوشیزگی پر شبہ نہیں کیا جاسکتا۔ انہی کی زبانی اس کا خار اشگاف ترجمہ سن کر ہمارے تو پسینے چھوٹنے لگے۔ اس کے شرنگار رس کے سامنے اردو کی...
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