aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सब्ज़"
सबा अकबराबादी
1908 - 1991
शायर
हसीब सोज़
अब्दुल अहद साज़
1950 - 2020
जावेद सबा
born.1958
सबा अफ़ग़ानी
1922 - 1976
वज़ीर अली सबा लखनवी
1793 - 1855
मीर सोज़
1721 - 1798
सिद्धार्थ साज़
born.1996
सबीहा सबा
सिब्त अली सबा
1935 - 1980
एहसान सब्ज़
born.1950
रश्मि सबा
परवीन सबा
लेखक
लाल कांजी मल सबा
born.1792
कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सहीअगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी कोये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हमतू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
हैं कड़वाहट में ये भीगे हुए लम्हे अजब से कुछसरासर बे-हिसाबाना सरासर बे-सबब से कुछ
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
इश्क़ और प्रेम पर ये शायरी आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत, इश्क़ और प्रेम के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.
सब्ज़سبز
green
सब अफ़्साने मेरे
हाजरा मसरूर
अफ़साना
इक़बाल सब के लिए
फ़रमान फ़तेहपुरी
आलोचना
वो जो शाइरी का सबब हुआ
कलीम आजिज़
काव्य संग्रह
अरबी ज़बान के दस सबक़
अब्दुस्सलाम किदवई नदवी
भाषा
सब रस का तन्क़ीदी जाएज़ा
मंज़र आज़मी
Urdu Nazm Ke Silsile
अलीम सबा नवेदी
नज़्म
सब्ज़-ए-साहिल
ज़ुबैर रिज़वी
सबक़ आमोज़ कहानियाँ
मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
बाल-साहित्य
डॉ वज़ीर आग़ा अह्द साज़ शख़्सियत
हैदर क़ुरैशी
पाकिस्तान में उर्दू शायरी
मैं साज़ ढूंढती रही
अदा जाफ़री
कविता
Chashm-e-Sitara Shumar
साज़-ए-सुख़न बहाना है
अहद साज़ लोग
अबुल फ़ज़ल सिद्दीक़ी
स्केच / ख़ाका
रियाज़-उल-अन्साब
सय्यद महमूद अली सबा
आत्मकथा
सो गई होगी वो शफ़क़-अंदामसब्ज़ क़िंदील जल रही होगी
शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ सेतमन्ना की अमारी जा रही है
गर नहीं निकहत-ए-गुल को तिरे कूचे की हवसक्यूँ है गर्द-ए-रह-ए-जौलान-ए-सबा हो जाना
सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मींतुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
सुल्ताना का दिल धड़क रहा था। उसने कहा, “ये मुआ पाख़ाना है या क्या है। बीच में ये रेल गाड़ियों की तरह ज़ंजीर क्या लटका रखी है। मेरी कमर में दर्द था। मैंने कहा चलो इसका सहारा ले लूंगी, पर इस मुए ज़ंजीर को छेड़ना था कि वो धमाका हुआ कि मैं तुम से क्या कहूं।”इस पर ख़ुदाबख़्श बहुत हंसा था और उसने सुल्ताना को इस पैख़ाने की बाबत सब कुछ बता दिया था कि ये नए फैशन का है जिसमें ज़ंजीर हिलाने से सब गंदगी नीचे ज़मीन में धँस जाती है।
इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की था इक दुनिया अपने ख़्वाब की थावो एक बहार जो आई नहीं उस के लिए सब कुछ हार दिया
सुर्ख़ लबों से सब्ज़ दुआएँ फूटी हैंपीले फूलों तुम को नीली आँखें देखें
उसके सारे जिस्म में मुझे उसकी आँखें बहुत पसंद थीं।ये आँखें बिल्कुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं, हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बदसूरती में तमीज़ कर सकता हूँ। लेकिन माफ़ कीजिएगा, इन आँखों के मुआमले में सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ कि वो ख़ूबसूरत नहीं थीं। लेकिन इसके बावजूद उनमें बेपनाह कशिश थी।
अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थीवो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी
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