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नज़्म
शिकवा
इस गुलिस्ताँ में मगर देखने वाले ही नहीं
दाग़ जो सीने में रखते हों वो लाले ही नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
वो भी दिन थे कि यही माया-ए-रानाई था
नाज़िश-ए-मौसम-ए-गुल लाला-ए-सहराई था
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
आवारा
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
सूलियों पर हमारे लबों से परे
तेरे होंटों की लाली लपकती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिल-जलों में शुमार होगा
अल्लामा इक़बाल
शेर
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है
हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है
लाला माधव राम जौहर
नज़्म
जावेद के नाम
ख़ुदा अगर दिल-ए-फ़ितरत-शनास दे तुझ को
सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल से कलाम पैदा कर