aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHadiija"
ख़दीजा मस्तूर
1927 - 1982
लेखक
हैदर अली आतिश
1778 - 1847
शायर
सबा अकबराबादी
1908 - 1991
ख़दीजा ख़ान
born.1968
नईम अख़्तर ख़ादिमी
ख़्वाजा जावेद अख़्तर
1964 - 2013
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
1727 - 1798
ख़ालिदा उज़्मा
असर सहबाई
1901 - 1963
ख़्वाजा शौक़
born.1925
ख़ालिदा हुसैन
1938 - 2019
लइक़ सलाह
born.1936
ख़दीजा बेगम
ख़दीजा कमाल
ख़दीजा सुल्ताना
बहुत दिनों से तुम्हारे जल्वे 'ख़दीजा-मस्तूर' हो गए हैंहै शुक्र-ए-बारी कि सामने अपने आज फिर तुम को पा रहा हूँ
मुझे अम्न से मुहब्बत है, मुझे जंग से नफ़रत है, मगर मुझे उस जंग से भी अम्न की तरह मुहब्बत है जो इन्सान अपनी आज़ादी, अपनी इज़्ज़त और मुल्क की बक़ा के लिए लड़ता है।...
अब जंग ख़त्म हो चुकी है, जगह-जगह पर खुदी हुई हिफ़ाज़ती ख़ंदक़ें पट चुकी हैं, जिन लोगों के घर तोप के गोलों से मलबे में तबदीली हो चुके थे, उन घरों को फिर से आबाद किया जा रहा है, फ़ायर-बंदी हुए भी अ’र्सा गुज़र गया, जब जंग शुरू’ हुई थी...
कल साजिद मियां का निकाह था मगर ख़ुशी की बजाय उनके चेहरे पर वहशत बरस रही थी। वो अपनी दोनों बहनों से बार-बार कह रहे थे, "ए बड़ी बजिया, आप अच्छी तरह सुन लें मेरा बिस्तर हमेशा की तरह अम्मां बी के कमरे में बिछा रहेगा। उसे कोई नहीं हटाएगा...
شاباش بھائی نصیر شاباش! چھوٹی بہن مرکے چھوٹی۔ بڑی بہن کو جیتے جی چھوڑا۔ غضب خدا کا تین تین چار چار مہینے گزر جائیں اور تم کو دو حروف لکھنے کی توفیق نہ ہو۔ حفیظ کے نکاح میں۔ وہ بھی چچی جان کی زبانی معلوم ہوا کہ ملتان کی بدلی...
ख़दीजाخدیجہ
Khadija-allusion to first wife of prophet
-हज़रत मुहम्मद साहिब की पहली पत्नी ।।
Aangan
ऐतिहासिक
Sapna Sa Lage
ग़ज़ल
Zameen
उपन्यास
ख़दीजा मस्तूर की नावेल निगारी पर ए् नज़र
डॉ. इश्तियाक़ आलम आज़मी
Thanda Meetha Pani
कहानियाँ
नॉवेल / उपन्यास
Aagan
Bochhar
महिलाओं की रचनाएँ
Thake Haare
Khadija Mastoor Shakhsiyat Aur Fan
ताज बेगम फरख़ी
जीवनी
Seerat-e-Hazrat Khadija-tul-Kubra
मायल ख़ैराबादी
इस्लामियात
Chand Roz Aur
Masroof Aurat
तज़्किरा/संस्मरण/जीवनी
कनीज़ कोठरी के एक कोने में सर न्योढ़ाए बैठी थी और दुपट्टे के आँचल से आँसू पोंछे जा रही थी। उसके पास अम्माँ कमर पर दोनों हाथ रखे खड़ी थी और उसे घूर-घूर कर देखे जा रही थी। कनीज़ ने एक बार सर उठा कर बेबसी से माँ को देखा...
सुनते थेगुनाहों की इंतिहा
ये यादेंये बातें
मोहम्मद भूरे वल्द मोहम्मद बूटे के दिमाग़ में कोई ख़लल पैदा होगया है, ये सबका मुत्तफ़िक़ा फ़ैसला था मगर मिस लाली ख़ाँ हाउस सर्जन का ख़्याल था कि इनके दिमाग़ में कोई ख़लल नहीं है क्योंकि वो बक़ायमी होश-ओ-हवास तमाम काम अंजाम देता है, अगर घंटे की आवाज़ से उसपर...
जब वो अफ़सर बहादुर के घर नौकरी के लिए भेजा गया तो उसपर अजीब सी वहशत तारी थी। शाने झुके हुए, रंग पीला, आँखों तले अंधेरा। इतनी बड़ी कोठरी में वो यूँ खो गया जैसे सचमुच मर गया हो। यतीमों की तरह खड़ा टुकुर-टुकुर दूसरे नौकरों का मुँह तक रहा...
ज़मीं से फ़लक तकआख़िरी झलक तक
Muhammad, the last prophet and founder of Islam, was born in Mecca (c. 570) in the tribe of Quraish. His father, Abdullah, had already passed away before he was born and his mother, Amena, died when he was only six years old. He was looked after by his paternal grandfather,...
तेरी गुफ़्तुगू मेंएक जुस्तुजू है
ज़िंदगी अजब हैफिर भी अपने पास
बहुत ख़ूबसूरतख़ुशनुमा
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