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शेर
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
ग़म-ए-तंहाई मगर रुख़ पे उभरने न दिया
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
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शेर
सवेरा ले के आता है मिरे ख़्वाबों की ताबीरें
मगर जब शाम होती है तो उन की याद आती है
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
घटा जब रक़्स करती है तो उन की याद आती है
कभी जब मेंह बरसती है तो उन की याद आती है