aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "audible"
आदिल मंसूरी
1936 - 2008
शायर
शबीना अदीब
आबिद अदीब
born.1937
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
born.1972
आदिल रज़ा मंसूरी
born.1978
आदिल असीर देहलवी
1959 - 2014
आदिल राही
born.1993
अहमद आदिल
born.1952
अदील ज़ैदी
born.1958
आदिल रशीद
born.1967
अज़हर अदीब
born.1949
आदिल लखनवी
आदिल फ़रहत
born.1984
मिर्ज़ा अदीब
1914 - 1999
लेखक
अदीब सहारनपुरी
1920 - 1963
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ मेंआबले पड़ गए ज़बान में क्या
ऑडीबल रेंज से भी बहुत दूर नीचेकराहों की लहरें फ़ना हो रही हैं
बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझेआज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम सेमोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख करउस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
महात्मा गांधी ऐसा नाम है जिसने कवियों और लेखकों पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। भारत के राष्ट्रपिता जिन्हें हम प्यार से बापू कहते हैं, भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन और अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की बदौलत उर्दू कवियों पर भी गहरा असर छोड़ने में सफ़ल रहे हैं। महात्मा गांधी के सिद्धांतों और उनके उपदेशों का प्रवाह उर्दू शायरी में किस प्रकार है इसका अंदाज़ा आप नीचे दी गई कविताओं से लगा सकते हैं।
अग्रणी आधुनिक शायार भाषा के परम्परा-विरोधी प्रयोग के लिए प्रसिद्ध अच्छे कैलीग्राफ़र और नाटक कार भी
‘याद’ को उर्दू शाइरी में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
ऑडीबलآڈیبل
audible
Tareekh-e-Adab-e-Urdu
नूरुल हसन नक़वी
इतिहास
तारीख़-ए-अदब-ए-उर्दू
जमील जालिबी
Aadab-e-Zindagi
मोहम्मद यूसुफ़ इस्लाही
इस्लामियात
राम बाबू सकसेना
तारीख़-ए-अदब अरबी
अहमद हसन ज़य्यात
साहित्य का इतिहास
वहाब अशरफ़ी
Mukhtasar Tareekh-e-Adab-e-Urdu
सय्यद एजाज़ हुसैन
Aadab-e-Muashrat
मौलाना अशरफ़ अली थानवी
Tareekh-e Adab-e-Urdu (Part-002)
Tareekh-e-Adab-e-Urdu 1700 Tak
सय्यदा जाफ़र
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप कोकाग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
मिरा क़लम नहीं मीज़ान ऐसे आदिल कीजो अपने चेहरे पे दोहरा नक़ाब रखता है
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाहीखुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गयाये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
कभी जब मुद्दतों के बा'द उस का सामना होगासिवाए पास आदाब-ए-तकल्लुफ़ और क्या होगा
'नूह' की क़द्र कोई क्या जानेकहीं ऐसे अदीब होते हैं
जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब केउसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैंहर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
रात बीती तो गिने आबले और फिर सोचाकौन था बाइस-ए-आग़ाज़-ए-सफ़र शाम के बा'द
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दियाउदासी की मेहनत ठिकाने लगी
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