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शायर और लेखक

शायर और लेखक

अज़हर अदीब

ग़ज़ल 16

अशआर 34

तू अपनी मर्ज़ी के सभी किरदार आज़मा ले

मिरे बग़ैर अब तिरी कहानी नहीं चलेगी

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हम ने घर की सलामती के लिए

ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है

ज़रा सी देर तुझे आइना दिखाया है

ज़रा सी बात पर इतने ख़फ़ा नहीं होते

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लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है

अब तो ज़हर अल्फ़ाज़ में रक्खा जाता है

समझ में तो सकती है सबा की गुफ़्तुगू भी

मगर इस के लिए मा'सूम होना लाज़मी है

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