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शेर
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
शेर
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
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नज़्म
उस्ताद का डंडा
है वो उस्ताद बुरा जो कि जमाए डंडे
है वो शागिर्द भी बुद्धू कि जो खाए डंडे
सय्यदा फ़रहत
ग़ज़ल
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मैं वो हूँ जिस का ज़माने ने सबक़ याद किया
ग़म ने शागिर्द किया फिर मुझे उस्ताद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
ज़रा ये सीख लेते दिल के ले लेने का ढब क्या है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शागिर्द तर्ज़-ए-ख़ंदा-ज़नी में है गुल तिरा
उस्ताद-ए-अंदलीब हैं सोज़-ओ-फ़ुग़ाँ में हम
हैदर अली आतिश
नज़्म
शरारती लड़के और क़व्वाली
हम भी शागिर्द-ए-सितम-गार हैं इतना मानें
पीछे पीछे ही भगाएँ तो मज़ा आ जाए
हसरत जयपुरी
ग़ज़ल
है ये इंसाँ बड़े उस्ताद का शागिर्द-ए-रशीद
कर सके कौन अगर ये भी ख़िलाफ़त न करे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान ओ दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं