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ग़ज़ल
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
नोक-ए-नश्तर हो तो हाँ क़ाबिल-ए-तहरीक है दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मिरे बारे में उस के कान भरता है कोई शायद
बयाँ तौसीफ़ करता हूँ तो वो तज़हीक समझे है
ज़मीर अतरौलवी
ग़ज़ल
दूर हो वादी-ए-मजनूँ से निकल ऐ वहशत
किस वसीले से मिली तुझ को जहाँ की तमलीक
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
नज़्म
शिकवा
है बजा शेवा-ए-तस्लीम में मशहूर हैं हम
क़िस्सा-ए-दर्द सुनाते हैं कि मजबूर हैं हम