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ग़ज़ल
न कर तक़लीद ऐ जिबरील मेरे जज़्ब-ओ-मस्ती की
तन-आसाँ अर्शियों को ज़िक्र ओ तस्बीह ओ तवाफ़ औला
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत
बढ़ा तस्बीह-ख़्वानी के बहाने अर्श की जानिब
तमन्ना-ए-दिली आख़िर बर आई सई-ए-पैहम से
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती हैं जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उन को तस्बीह-ख़्वाँ बनाया
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
बयाँ क्या कीजिए बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ का
कि हर यक क़तरा-ए-ख़ूँ दाना है तस्बीह-ए-मरजाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बला-ए-जाँ हैं ये तस्बीह और ज़ुन्नार के फंदे
दिल-ए-हक़-बीं को हम इस क़ैद से आज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
वो कैसी औरतें थीं
उन्हें ही ढूँढती फिरती हूँ गलियों और मकानों में
किसी मीलाद में जुज़दान में तस्बीह दानों में
असना बद्र
नज़्म
मोहब्बत
मिरा लहू अपनी गर्दिशों में उसी की तस्बीह पढ़ रहा है
जो मेरी चाहत से बे-ख़बर है