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अब्दुल हमीद अदम

1909 - 1981 | पाकिस्तान

लोकप्रिय शायर, ज़िंदगी और मोहब्बत से संबंधित रुमानी शायरी के लिए विख्यात।

लोकप्रिय शायर, ज़िंदगी और मोहब्बत से संबंधित रुमानी शायरी के लिए विख्यात।

अब्दुल हमीद अदम के शेर

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सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर

आप रस्ते में रह गया हूँ मैं

जेब ख़ाली है 'अदम' मय क़र्ज़ पर मिलती नहीं

एक दो बोतल पे दीवाँ बेचने वाला हूँ मैं

जिन से इंसाँ को पहुँचती है हमेशा तकलीफ़

उन का दावा है कि वो अस्ल ख़ुदा वाले हैं

सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में

मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही

अपनों से भी इतना तकल्लुफ़

कितने दुनिया-दार बने हो

किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है

मुझे याद रही है आज मथुरा और काशी की

किस को समझाने लगे आप जनाब-ए-नासेह

मैं तो नादाँ हूँ मगर आप तो नादान नहीं

अदम बहुत ही अगर रूठने लगी उम्मीद

किसी के वा'दे पे फिर ए'तिबार कर लूँगा

दिल ख़ुश हुआ है मस्जिद-ए-वीराँ को देख कर

मेरी तरह ख़ुदा का भी ख़ाना ख़राब है

व्याख्या

इस शे’र में शायर ने ख़ुदा से मज़ाक़ किया है जो उर्दू ग़ज़ल की परंपरा रही है। शायर अल्लाह पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे बंदों ने तुम्हारी इबादत करना छोड़ दी है जिसकी वजह से मस्जिद वीरान हो गई है। चूँकि तुमने मेरी क़िस्मत में ख़ाना-ख़राबी लिखी थी तो अब तुम्हारा उजड़ा हुआ घर देखकर मेरा दिल ख़ुश हुआ है।

शफ़क़ सुपुरी

हर दिल-फ़रेब चीज़ नज़र का ग़ुबार है

आँखें हसीन हों तो ख़िज़ाँ भी बहार है

कुछ कुछ मिरी आँखों का तसर्रुफ़ भी है शामिल

इतना तो हसीं तू मिरे गुलफ़ाम नहीं है

दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मेहरबानी चाहिए

मैं बद-नसीब हूँ मुझ को दे ख़ुशी इतनी

कि मैं ख़ुशी को भी ले कर ख़राब कर दूँगा

मय-कदा है यहाँ सुकूँ से बैठ

कोई आफ़त इधर नहीं आती

किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी है

हिलाल-ए-ईद तो कोई सुबूत-ए-ईद नहीं

हम को शाहों की अदालत से तवक़्क़ो' तो नहीं

आप कहते हैं तो ज़ंजीर हिला देते हैं

ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म

मिरे ख़ुदा यही इंसाँ की ज़िंदगानी है

महशर में इक सवाल किया था करीम ने

मुझ से वहाँ भी आप की तारीफ़ हो गई

मैं यूँ तलाश-ए-यार में दीवाना हो गया

काबे में पाँव रक्खा तो बुत-ख़ाना हो गया

मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया

वर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था

बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'

बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया

जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए

डर डर के प्यार करने में कोई मज़ा नहीं

इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से

सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी

काश मैं तेरी मुलाक़ात को ख़ुद ही आता

तूर पर भेज के मूसा को पशेमाँ हूँ मैं

तख़लीक़-ए-काएनात के दिलचस्प जुर्म पर

हँसता तो होगा आप भी यज़्दाँ कभी कभी

गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है

तबस्सुम की सज़ा कितनी बड़ी है

हम ने तुम्हारे बाद रक्खी किसी से आस

इक तजरबा बहुत था बड़े काम गया

लोग कहते हैं कि तुम से ही मोहब्बत है मुझे

तुम जो कहते हो कि वहशत है तो वहशत होगी

मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू तो मिरी जाँ कुछ और था

दौरान-ए-गुफ़्तुगू में तेरी बात गई

बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी

डूबने वाले तिरे हाथ से साहिल तो गया

ये अलग बात है साक़ी कि मुझे होश नहीं

होश इतना है कि मैं तुझ से फ़रामोश नहीं

ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का

क्या थमेगा बहाव पानी का

चली है जब भी दुनिया के मज़ालिम की शिकायत से

तो अक्सर इल्तिफ़ात-ए-दोस्ताँ तक बात पहुँची है

आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें

कौन बेहोश हो नहीं सकता

साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद

मुझ को तिरी निगाह का इल्ज़ाम चाहिए

मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस

जीने वाले कमाल करते हैं

हौले हौले वस्ल हुआ

धीरे धीरे जान गई

मुद्दआ दूर तक गया लेकिन

आरज़ू लौट कर नहीं आई

कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस

मैं मय-कदे में तिरा इंतिज़ार कर लूँगा

ज़रा इक तबस्सुम की तकलीफ़ करना

कि गुलज़ार में फूल मुरझा रहे हैं

वो हसीं बैठा था जब मेरे क़रीब

लज़्ज़त-ए-हमसायगी थी मैं था

जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है

ख़िरद रस्ता दिखा कर रह गई है

मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत

कोई ज़ोहरा-जबीं पीने पे जब मजबूर करता है

दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं

रहबर तो फ़क़त इस रस्ते में दो गाम सहारा देते हैं

नौजवानी में पारसा होना

कैसा कार-ए-ज़बून है प्यारे

सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ

जवाब दे के मुझे और शर्मसार कर

देखा है किस निगाह से तू ने सितम-ज़रीफ़

महसूस हो रहा है मैं ग़र्क़-ए-शराब हूँ

मेरे होने में मिरा अपना नहीं था कुछ शरीक

मेरी हस्ती सिर्फ़ तेरे ए'तिना की बात थी

शिकन डाल जबीं पर शराब देते हुए

ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला

व्याख्या

जबीं अर्थात माथा। जबीं पर शिकन डालने के कई मायने हैं। जैसे ग़ुस्सा करना, किसी से रूठ जाना आदि। शायर मदिरापान कराने वाले अर्थात अपने महबूब को सम्बोधित करते हुए कहता है कि शराब एक मुस्कुराती हुई चीज़ है और उसे किसी को देते हुए माथे पर बल डालना अच्छी बात नहीं क्योंकि अगर साक़ी माथे पर बल डालकर किसी को शराब पिलाता है तो फिर उस मदिरा का असली मज़ा जाता रहता है। इसलिए मदिरापान कराने वाले पर अनिवार्य है कि वो मदिरापान के नियमों को ध्यान में रखते हुए पीने वाले को शराब मुस्कुरा कर पिलाए।

शफ़क़ सुपुरी

थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'

दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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