Ameer Minai's Photo'

अमीर मीनाई

1829 - 1900 | हैदराबाद, भारत

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

अमीर मीनाई की चित्र शायरी

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'

मानी हैं मैं ने सैकड़ों बातें तमाम उम्र

तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

कहते हो कि हमदर्द किसी का नहीं सुनते

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'

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