अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल 14
शेर 13
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर
चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का ज़ंग था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रौशन अलाव होते ही आया तरंग में
वो क़िस्सा-गो ख़ुद अपने में इक दास्तान था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी
सो अपने आप से बाहर क़याम कर लिया है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए