aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़ारूक़ इंजीनियर

1960 | जयपुर, भारत

फ़ारूक़ इंजीनियर

ग़ज़ल 27

अशआर 2

पिछ्ला बरस तो ख़ून रुला कर गुज़र गया

क्या गुल खिलाएगा ये नया साल दोस्तो

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बरस रही है उदासी तमाम आँगन में

वो रत-जगों की हवेली बड़े अज़ाब में है

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दोहा 3

आँखों को यूँ भा गया उस का रूप-अनूप

सर्दी में अच्छी लगे जैसे कच्ची धूप

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समय के धारे देख कर होता है विश्वास

एक एक दिन देखना शेर चरेंगे घास

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किस को अब दिखलाएँ हम अपने दिल का ख़ून

सुनते आए हैं यही अंधा है क़ानून

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पुस्तकें 5

 

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