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जावेद नदीम

1958 | मुंबई, भारत

जावेद नदीम

ग़ज़ल 16

नज़्म 25

अशआर 4

इक इक दिन तो मुसख़्ख़र उस को होना है 'नदीम'

वो ख़लाओं का मकीं है नूर की रफ़्तार मैं

कौन सुनता है यहाँ पस्त-सदाई इतनी

तुम अगर चीख़ के बोलो तो असर भी होगा

जो रहनुमा थे मेरे कहाँ हैं वो नक़्श-ए-पा

मंज़िल पे छोड़ता था जो रस्ता किधर गया

ये किस के आसमाँ की हदों में छुपा हूँ मैं

अपनी ज़मीं से उठ के कहाँ गया हूँ मैं

पुस्तकें 11

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