कौसर नियाज़ी
ग़ज़ल 17
नज़्म 1
अशआर 17
ज़रूर तेरी गली से गुज़र हुआ होगा
कि आज बाद-ए-सबा बे-क़रार आई है
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तुझे कुछ उस की ख़बर भी है भूलने वाले
किसी को याद तेरी बार बार आई है
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तबाही की घड़ी शायद ज़माने पर नहीं आई
अभी अपने किए पर आदमी शर्मा ही जाता है
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बे-सबब आज आँख पुर-नम है
जाने किस बात का मुझे ग़म है
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मैं ने हर गाम उसे अव्वल ओ आख़िर जाना
लेकिन उस ने मुझे लम्हों का मुसाफ़िर जाना
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