पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल 26
अशआर 3
दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है
जो तिरे इश्क़ में दीवाना नज़र आता है
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आरज़ू हसरत तमन्ना मुद्दआ' कोई नहीं
जब से तुम हो मेरे दिल में दूसरा कोई नहीं
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काम कुछ तेरे भी होते तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
हाँ मगर मेरे ख़ुदा तेरा ख़ुदा कोई नहीं
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