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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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राग़िब देहलवी

ग़ज़ल 2

 

नज़्म 1

 

अशआर 8

क़तरों से समुंदर का बनाना नहीं मुश्किल

क़तरे में समुंदर को समोने की अदा सीख

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बैठेगा तो रुक जाएगी ये गर्दिश-ए-दौराँ

तू ख़ूँ की तरह जिस्म में फिरने की अदा सीख

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शौक़-ए-मंज़िल मुझे यूँ ले के उड़ा

ख़ार देखे रहगुज़र देखी

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अगर चलता सहारों पर ही 'राग़िब'

तो चलने के कभी क़ाबिल होता

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अब दिल में आरज़ू-ए-चमन ही नहीं रही

क़िस्से सुने जो हम ने क़फ़स में बहार के

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