Sheikh Ibrahim Zauq
Ghazal 61
Sher 73
ek aañsū ne Duboyā mujh ko un kī bazm meñ
buuñd bhar paanī se saarī aabrū paanī huī
a single tear caused my fall in her company
just a drop of water drowned my dignity
ek aansu ne Duboya mujh ko un ki bazm mein
bund bhar pani se sari aabru pani hui
a single tear caused my fall in her company
just a drop of water drowned my dignity
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ab to ghabrā ke ye kahte haiñ ki mar jā.eñge
mar ke bhī chain na paayā to kidhar jā.eñge
being agitated I express the hope to die, although
in death, if solace is not found, then where shall I go?
ab to ghabra ke ye kahte hain ki mar jaenge
mar ke bhi chain na paya to kidhar jaenge
being agitated I express the hope to die, although
in death, if solace is not found, then where shall I go?
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zāhid sharāb piine se kāfir huā maiñ kyuuñ
kyā DeḌh chullū paanī meñ īmān bah gayā
यह शे’र मायनी और लक्षण दोनों दृष्टि से दिलचस्प है। शे’र में वही शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिन्हें उर्दू ग़ज़ल की परम्परा की विशेषता समझा जाता है। जैसे ज़ाहिद-ए-शराब, काफ़िर, ईमान। मगर मायनी की सतह पर ज़ौक़ ने व्यंग्य के लहजे से जो बात पैदा की है वो पाठक को चौंका देती है। शे’र में ज़ाहिद के सम्बंध से शराब, काफ़िर के सम्बंध से ईमान के अलावा पीने, पानी और बहने से जो स्थिति पैदा हुई है वो अपने आप में एक शायराना कमाल है। ज़ाहिद उर्दू ग़ज़ल की परम्परा में उन पात्रों में से एक है जिन पर शायरों ने खुल कर तंज़ किए हैं।
शे’र के किरदार ज़ाहिद से सवाल पूछता है कि शराब पीने से आदमी काफ़िर कैसे हो सकता है, क्या ईमान इस क़दर कमज़ोर चीज़ होती है कि ज़रा से पानी के साथ बह जाती है। इस शे’र के पंक्तियों के बीच में ज़ाहिद पर जो तंज़ किया गया है वो “डेढ़ चुल्लू” पानी से स्पष्ट होता है। यानी मैंने तो ज़रा सी शराब पी ली है और तुमने मुझ पर काफ़िर होने का फ़तवा जारी कर दिया। क्या तुम्हारी नज़र में ईमान इतनी कमज़ोर चीज़ है कि ज़रा सी शराब पीने से ख़त्म हो जाती है।
zahid sharab pine se kafir hua main kyun
kya DeDh chullu pani mein iman bah gaya
यह शे’र मायनी और लक्षण दोनों दृष्टि से दिलचस्प है। शे’र में वही शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिन्हें उर्दू ग़ज़ल की परम्परा की विशेषता समझा जाता है। जैसे ज़ाहिद-ए-शराब, काफ़िर, ईमान। मगर मायनी की सतह पर ज़ौक़ ने व्यंग्य के लहजे से जो बात पैदा की है वो पाठक को चौंका देती है। शे’र में ज़ाहिद के सम्बंध से शराब, काफ़िर के सम्बंध से ईमान के अलावा पीने, पानी और बहने से जो स्थिति पैदा हुई है वो अपने आप में एक शायराना कमाल है। ज़ाहिद उर्दू ग़ज़ल की परम्परा में उन पात्रों में से एक है जिन पर शायरों ने खुल कर तंज़ किए हैं।
शे’र के किरदार ज़ाहिद से सवाल पूछता है कि शराब पीने से आदमी काफ़िर कैसे हो सकता है, क्या ईमान इस क़दर कमज़ोर चीज़ होती है कि ज़रा से पानी के साथ बह जाती है। इस शे’र के पंक्तियों के बीच में ज़ाहिद पर जो तंज़ किया गया है वो “डेढ़ चुल्लू” पानी से स्पष्ट होता है। यानी मैंने तो ज़रा सी शराब पी ली है और तुमने मुझ पर काफ़िर होने का फ़तवा जारी कर दिया। क्या तुम्हारी नज़र में ईमान इतनी कमज़ोर चीज़ है कि ज़रा सी शराब पीने से ख़त्म हो जाती है।
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ai 'zauq' takalluf meñ hai taklīf sarāsar
ārām meñ hai vo jo takalluf nahīñ kartā
save trouble, in formality, zauq nothing else can be
at ease he then remains he who, eschews formality
ai 'zauq' takalluf mein hai taklif sarasar
aaram mein hai wo jo takalluf nahin karta
save trouble, in formality, zauq nothing else can be
at ease he then remains he who, eschews formality
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Qita 4
BOOKS 63
Image Shayari 16
tuu bhalaa hai to buraa ho nahii.n saktaa ai 'zauq' hai buraa vo hii ki jo tujh ko buraa jaantaa hai aur agar tuu hii buraa hai to vo sach kahtaa hai kyuu.n buraa kahne se tuu us ke buraa maantaa hai