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त्रिपुरारि

1986 | मुंबई, भारत

त्रिपुरारि

ग़ज़ल 14

नज़्म 5

 

अशआर 22

कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी

मैं क़ब्रिस्तान हूँ शुरूआत ही से

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नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले

कौन है दफ़्न मेरे ख़्वाबों में

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प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया

पर मिरे होंटों के ये दोनों किनारे जल गए

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ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने

कहीं मैं मर जाऊँ तिश्नगी से

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शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है

शेर कहते हुए मैं कितनी दफ़ा मरता हूँ

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चित्र शायरी 4

 

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