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ग़ज़ल 49
शेर 35
चाहत का जब मज़ा है कि वो भी हों बे-क़रार
दोनों तरफ़ हो आग बराबर लगी हुई
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टैग : वैलेंटाइन डे
ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
हश्र तक जलता है नेकी का चराग़
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