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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
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नज़्म
एक आरज़ू
इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले
तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
बरबत की सदा पर रो देना मुतरिब के बयाँ पर रो देना
एहसास को ग़म बुनियाद न कर