aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kamaan"
क़मर जलालवी
1887 - 1968
शायर
अब्बास क़मर
born.1994
क़मर जलालाबादी
1917 - 2003
अहमद कमाल परवाज़ी
born.1944
क़मर मुरादाबादी
1910 - 1987
तारिक़ क़मर
born.1975
क़मर अब्बास क़मर
born.1993
हसन कमाल
born.1943
क़मर जमील
1927 - 2000
आजिज़ कमाल राना
born.2000
शाहिद कमाल
born.1982
रेहाना क़मर
born.1962
अब्दुल्लाह कमाल
1948 - 2010
क़मर बदायुनी
1876 - 1941
जावेद कमाल रामपुरी
1930 - 1978
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ मेंपलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
चाल जैसे कड़ी कमान का तीरदिल में ऐसे के जा करे कोई
ख़ामुशी कह रही है कान में क्याआ रहा है मिरे गुमान में क्या
फ़सील-ए-शहर के हर बुर्ज हर मनारे परकमाँ-ब-दस्त सितादा हैं अस्करी उस के
अबरू से है क्या उस निगह-ए-नाज़ को पैवंदहै तीर मुक़र्रर मगर इस की है कमाँ और
कमर क्लासिकी शायरी में एक दिल-चस्प मौज़ू है। शायरी के इस हिस्से को पढ़ कर आप शायरों के तख़य्युल की दाद दिए बग़ैर नहीं रह सकेंगे। माशूक़ की कमर की ख़ूबसूरती, बारीकी या ये कहा जाए कि उस की मादूमी को शायरों ने हैरत-अंगेज़ तरीक़ों से बरता है। हम इस मौज़ू पर कुछ अच्छे अशआर का इन्तिख़ाब पेश कर रहे हैं आप उसे पढ़िए और आम कीजिए।
कमानکمان
bow, arch, spring, elastic
धनुष, धनु, धन्व, धन्वा, तीर चलाने का यंत्र, क़ौस ।।
कमाँکماں
क़ौमोंقوموں
nations, communities
कमीनکمین
mean, wile, base
दे. ‘कमींगाह', (उ.) कमीनः ।
तिलिस्म-ए होशरुबा
मुंशी अहमद हुसैन क़मर
दास्तान
Ahang Aur Arooz
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
Urdu Radio Aur Television Men Tarsel-o-Iblagh Ki Zaban
आलोचना
Urdu Adab Mein Tanz-o-Mizah Ki Riwayat Aur Ham Asr Rujhanat: Ek Jaeza
क़मर रईस
हास्य-व्यंग इतिहास और आलोचना
Urdu Mein Biswin Sadi Ka Afsanvi Adab
फ़िक्शन तन्क़ीद
Agang Aur Arooz
छंदशास्र
Gaudan Ka Tanqeedi Mutala
अनवर कमाल हुसैनी
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
Baqiya-e Tilism-e Hoshruba
Bahadur Ali
क़मर अली अब्बासी
उपन्यास
प्रेम चंद का तन्क़ीदी मुताला
Gham-e-Javedan
काव्य संग्रह
Rashk-e-Qamar
Kamal Ke Aadmi
रज़ा अली आबिदी
शख़्सियत
Ataturk
मोह्म्मद अशफ़ाक़ अली ख़ाँ
जीवनी
इक परिंदा अभी उड़ान में हैतीर हर शख़्स की कमान में है
अब आया तीर चलाने का फ़न तो क्या आयाहमारे हाथ में ख़ाली कमान बाक़ी है
है निस्फ़ शब में आज ज़ुहूर आफ़्ताब काक़ुर्बां कमान-ए-अबरू-ए-मौला पे जान ओ दिल
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ सेज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से
वो नाम हूँ कि जिस पे नदामत भी अब नहींवो काम हैं कि अपनी जुदाई कमाऊँ मैं
की आँच में तो यही शरर हैहर इक सियह शाख़ की कमाँ से
मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जामैं बुज़दिलों पे अपनी कमाँ तानती नहीं
इस तरह आशिक़ों पे कमाँ तानते नहीं
किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तकदेखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है
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