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क़मर बदायुनी

1876 - 1941 | बदायूँ, भारत

क़मर बदायुनी

अशआर 3

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम

रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है

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नामा-बर तू ही बता तू ने तो देखे होंगे

कैसे होते हैं वो ख़त जिन के जवाब आते हैं

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कहूँ कुछ उन से मगर ये ख़याल होता है

शिकायतों का नतीजा मलाल होता है

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