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ग़ज़ल
ये नया ज़ुल्म है ग़ुस्सा जो उन्हें आता है
बे-गुनाहों को भी माख़ूज़ वो कर लेते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
नज़्म
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात
जैसे माख़ूज़ हों लम्हे किसी अफ़्साने से
छोड़ जाएगा वही नर्म कसक फिर दिल में
अब्दुल अहद साज़
कहानी
وہ کہانیاں لکھتا رہتا ہے‘نئی نئی کہانیاں۔ مگر میں اس کی کہانیاں نہیں پڑھتی۔...
मोहम्मद हमीद शाहिद
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नज़्म
पहचान माख़ूज़
थूकों की मिलावट से ख़ून पलीद हो सकता है
ढोंग के रचाने से मंज़र तब्दील हो सकता है
कोमल राजा
नज़्म
शिकवा
तोड़े मख़्लूक़ ख़ुदावंदों के पैकर किस ने
काट कर रख दिए कुफ़्फ़ार के लश्कर किस ने
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है