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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हर कोई मस्त-ए-मय-ए-ज़ौक़-ए-तन-आसानी है
तुम मुसलमाँ हो ये अंदाज़-ए-मुसलमानी है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कैफ़ी आज़मी
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नज़्म
बंगाल
चमन को इस लिए माली ने ख़ूँ से सींचा था
कि उस की अपनी निगाहें बहार को तरसें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बच्चों की तौबा
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया