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नज़्म
रामायण का एक सीन
आख़िर असीर-ए-यास का क़ुफ़्ल-ए-दहन खुला
अफ़्साना-ए-शदाइद-ए-रंज-ओ-मेहन खुला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को
रंज रक्खा था मेहन रक्खा था ग़म रक्खा था
किस को परवाह था और किस में ये दम रक्खा था
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
यादें
बाद-ए-बहारी बन के चलेंगे सरसों बन कर फूलेंगे
ख़ुशियों के रंगीं झुरमुट में रंज-ओ-मेहन सब भूलेंगे
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
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ग़ज़ल
अब सिवा इस के मुदावा-ए-ग़म-ए-दिल क्या है
इतनी पी जाएँ कि हर रंज-ओ-मेहन को भूलें
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
नश्शा-ए-दौलत से मुनइ'म पैरहन में मस्त है
मर्द-ए-मुफ़्लिस हालत-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
हैदर अली आतिश
नज़्म
मेरा वतन
नाकाम हसरतों की यही तो है यादगार
दाग़ों का जो हुजूम दिल-ए-पुर-मेहन में है