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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इंतिसाब
दूसरी मालिये के बहाने से सरकार ने काट ली है
जिस की पग ज़ोर वालों के पाँव-तले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हास्य शायरी
तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
ये मुल्क अपना है और इस मुल्क की सरकार अपनी है
मिली है नौकरी जब से बग़ावत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
तिरी सरकार में लाया हूँ डाली हसरत-ए-दिल की
अजब क्या है मिरा मंज़ूर ये नज़राना हो जाए
बेदम शाह वारसी
नज़्म
ईद का दिन
नमाज़-ए-ईद पढ़ने के लिए सरकार आए हैं
और उन के साथ सारे तालिब-ए-दीदार आए हैं