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नज़्म
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
दस्त-अफ़्शाँ चलो मस्त ओ रक़्साँ चलो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
जवानी भटकती है बद-कार बन कर
जवाँ जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की