Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

जंगल शायरी

क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो

ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो

मियाँ दाद ख़ां सय्याह

वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना

बुरा बहुत था मगर आज से तो बेहतर था

मोहम्मद अल्वी

जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हम ने किया

शहर जैसा एक आदम-ख़ोर पैदा कर लिया

फ़रहत एहसास

अरे क्यूँ डर रहे हो जंगल से

ये कोई आदमी की बस्ती है

अहमद मुश्ताक़

ऐसा हंगामा था जंगल में

शहर में आए तो डर लगता था

मोहम्मद अल्वी

बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे

शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे

क़ैसर-उल जाफ़री

है शादाब नफ़रत का जंगल बहुत ही

मोहब्बत का हर पेड़ सूखा पड़ा है

मंसूर उमर

उम्र भर जंगल में रह सकता हूँ मैं

इस में घर जैसी फ़ज़ा मौजूद है

अंजुम ख़याली

जंगलों में कहीं खो जाना है

जानवर फिर मुझे हो जाना है

ख़लील मामून

किसी जंगल के गुल-बूटे से जी मेरा बहल जाता

तिरे हाथों से आजिज़ हूँ नहीं तो मैं निकल जाता

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बोलिए