सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
-
टैग्ज़ : फ़ेमस शायरीऔर 2 अन्य
अकेला हो रह-ए-दुनिया में गिर चाहे बहुत जीना
हुई है फ़ैज़-ए-तन्हाई से उम्र-ए-ख़िज़्र तूलानी
शहर-ए-जाँ में वबाओं का इक दौर था मैं अदा-ए-तनफ़्फ़ुस में कमज़ोर था
ज़िंदगी फिर मिरी यूँ बचाई गई मेरी शह-रग हटा दी गई या अख़ी