आदिल रज़ा मंसूरी
ग़ज़ल 8
नज़्म 12
अशआर 5
मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
किसी आवाज़ का पत्थर गिरा है
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सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है
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वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
अभी खिड़की में इक जलता दिया है
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नाम ने काम कर दिखाया है
सब ने देखा है तैरता पत्थर
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सारे तारे ज़मीं पे गिर जाते
ज़ोर से मैं जो फेंकता पत्थर
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