aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शहनाज रहमान शहनाज रहमान का संबंध ज्ञान एवं साहित्य तथा संस्कृति के नगर अलीगढ़ से है, जहाँ उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनका मुख्य क्षेत्र फिक्शन है, और वे पाठ केंद्रित विश्लेषण पर विशेष ध्यान देती हैं, जिसका स्पष्ट प्रमाण उनके शोध कार्य और पीएचडी अनुसंधान शीर्षक "आज़ादी के बाद अफ़साने की अमली तन्क़ीद का तजज़ियाती-ओ-तन्क़ीदी मुताला" में मिलता है। इस विषय वे पर लगातार लिखती रही हैं जिसकी पुष्टि उनकी किताबों से होती है. उर्दू फ़िक्शन तफ़हीम ताबीर और तन्क़ीद (2017) उर्दू फ़िक्शन मतन मअनी और मौक़िफ़ (2023) मुआसिर उर्दू नावल:तफ़हीम और तजज़िया (प्रकाशनाधीन) महाराष्ट्र में उर्दू नावल निगारी (प्रकाशनाधीन) रचनात्मक स्तर पर, शहनाज रहमान ने 2011 से कहानी लेखन का आरंभ किया। उनकी काहानिया पाठकों की रुचि का केंद्र बने, और उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का जाकिर अली खान पुरस्कार तथा शमिम नखत उर्दू फिक्शन पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रोफेसर अबुल कलाम कासमी ने अपनी पुस्तक 'उर्दू फिक्शन के मुज़मारात' में उनके बारे में उल्लेख किया है कि उनके विषय और शैली ने वर्तमान आलोचना का ध्यान आकर्षित किया है। उनका की कहानीयों का पहला संग्रह नैरंग-ए-जुनूँ 2017 में प्रकाशित हुआ, जिसके लिए उन्हें 2018 में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी काहनिया ऑल इंडिया रेडियो पर भी प्रसारित होती हैं, और उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी तथा बिहार उर्दू अकादमी के पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उनकी काहानियो का दुसरा संग्रह अभी प्रकाशनाधीन है।