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अनवर महमूद खालिद

गुजरात, पाकिस्तान

पाकिस्तानी शायर, उर्दू के अध्यापक रहे

पाकिस्तानी शायर, उर्दू के अध्यापक रहे

अनवर महमूद खालिद

ग़ज़ल 4

 

नज़्म 1

 

अशआर 4

जो हो सका मिरा उस को भूल जाऊँ मैं

पराई आग में क्यूँ उँगलियाँ जलाऊँ मैं

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हुए असीर तो फिर उम्र भर रिहा हुए

हमारे गिर्द तअल्लुक़ का जाल ऐसा था

इक धमाके से फट जाए कहीं मेरा वजूद

अपना लावा आप बाहर फेंकता रहता हूँ मैं

इतना सन्नाटा है कुछ बोलते डर लगता है

साँस लेना भी दिल जाँ पे गिराँ है अब के

"गुजरात" के और शायर

 

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