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मख़्फ़ी लखनवी

1902 - 1953 | कराची, पाकिस्तान

मख़्फ़ी लखनवी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 15

मिरा आना जहाँ में मुनहसिर था तीन बातों पर

जफ़ा सहना वफ़ा करना और उस के बाद मर जाना

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इश्क़ की अल्लाह रे फ़ित्ना-कारियाँ

पाक-दामन चाक-दामन हो गए

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इश्क़ की फ़ितरत ने यूँ बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी

जितने ग़म बढ़ने लगे उतनी ख़ुशी होने लगी

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जला आशियाँ जब से दिल मुतमइन है

बिजली का ख़तरा धड़का ख़िज़ाँ का

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पर्दा है इक बक़ा का राज़-ए-फ़ना पूछो

मर कर भी साथ हम से छूटा ज़िंदगी का

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