aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1943 - 2020 | लाहौर, पाकिस्तान
मैं बे-हुनर था मगर सोहबत-ए-हुनर में रहा
शुऊ'र बख़्शा हमा-रंग महफ़िलों ने मुझे
हाँ ये ख़ता हुई थी कि हम उठ के चल दिए
तुम ने भी तो पलट के पुकारा नहीं हमें
देखा उसे तो आँख से आँसू निकल पड़े
दरिया अगरचे ख़ुश्क था पानी तहों में था
रात सुनसान है गली ख़ामोश
फिर रहा है इक अजनबी ख़ामोश
वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ किया करते थे
हम जिसे चाहते थे चूम लिया करते थे
अल-नासिर
2005
Bayad-e-Shair-e-Mashriq
1977
डूबते चाँद का मंज़र
Dubte Chand Ka Manzar
1976
Muntakhab Ghazlein-1982
1983
Shamamah
2002
Unnees Sau Adsath Ke Muntakhab Afsane
1969
ज़रीह-ए-नौ अली नगर पाली, जिला गया
Shumara Number-003,004
Shumara Number-011,012
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