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नज़ीर अकबराबादी की टॉप 20 शायरी
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो
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टैग : जुदाई
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था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से
वो भी एे शोख़ तिरा चाहने वाला निकला
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मय पी के जो गिरता है तो लेते हैं उसे थाम
नज़रों से गिरा जो उसे फिर किस ने सँभाला
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थे हम तो ख़ुद-पसंद बहुत लेकिन इश्क़ में
अब है वही पसंद जो हो यार को पसंद
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क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
क्या तिरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम
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टैग : हज़ार दास्तान-ए-इश्क़
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जिस काम को जहाँ में तू आया था ऐ 'नज़ीर'
ख़ाना-ख़राब तुझ से वही काम रह गया
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दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं
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दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
बस तरसते ही चले अफ़्सोस पैमाने को हम
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टैग : मय-कदा
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कूचे में उस के बैठना हुस्न को उस के देखना
हम तो उसी को समझे हैं बाग़ भी और बहार भी
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जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
सच तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
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मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
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अभी कहें तो किसी को न ए'तिबार आवे
कि हम को राह में इक आश्ना ने लूट लिया
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अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा
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हम हाल तो कह सकते हैं अपना प कहें क्या
जब वो इधर आते हैं तो तन्हा नहीं आते
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कल शब-ए-वस्ल में क्या जल्द बजी थीं घड़ियाँ
आज क्या मर गए घड़ियाल बजाने वाले
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न गुल अपना न ख़ार अपना न ज़ालिम बाग़बाँ अपना
बनाया आह किस गुलशन में हम ने आशियाँ अपना
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जो बात हिज्र की आती तो अपने दामन से
वो आँसू पोंछता जाता था और मैं रोता था
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