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शमीम फ़ारूक़ी

1943 | पटना, भारत

शमीम फ़ारूक़ी

ग़ज़ल 15

अशआर 2

हसीन रुत है मगर कौन घर से निकलेगा

हर इक बदन में समाया हुआ है डर अब के

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दूर तक फैला हुआ है एक अन-जाना सा ख़ौफ़

इस से पहले ये समुंदर इस क़दर बरहम था

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