सुग़रा सदफ़
ग़ज़ल 34
नज़्म 7
अशआर 1
मैं आप अपनी मुख़ालिफ़ थी अपनी दुश्मन थी
मुझे ही मुझ से ये अच्छा किया जुदा कर के
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere