Ummeed Fazli
Ghazal 18
Sher 15
ye sard raat ye āvārgī ye niiñd kā bojh
ham apne shahr meñ hote to ghar ga.e hote
यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इसमें जो स्थिति पाई जाती है उसे अत्यंत एकांत अवस्था की कल्पना की जा सकती है। इसके विधानों में शिद्दत भी है और एहसास भी। “सर्द रात”, “आवारगी” और “नींद का बोझ” ये ऐसी तीन अवस्थाएं हैं जिनसे तन्हाई की तस्वीर बनती है और जब ये कहा कि “हम अपने शहर में होते तो घर गए होते” तो जैसे तन्हाई के साथ साथ बेघर होने की त्रासदी को भी चित्रित किया गया है। शे’र का मुख्य विषय तन्हाई और बेघर होना और अजनबीयत है। शायर किसी और शहर में है और सर्द रात में आँखों पर नींद का बोझ लिये आवारा घूम रहा है। स्पष्ट है कि वो शहर में अजनबी है इसलिए किसी के घर नहीं जा सकता वरना सर्द रात, आवारगी और नींद का बोझ वो मजबूरियाँ हैं जो किसी ठिकाने की मांग करती हैं। मगर शायर की त्रासदी यह है कि वो तन्हाई के शहर में किसी को जानता नहीं इसीलिए कहता है कि अगर मैं अपने शहर में होता तो अपने घर चला गया होता।
ye sard raat ye aawargi ye nind ka bojh
hum apne shahr mein hote to ghar gae hote
यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इसमें जो स्थिति पाई जाती है उसे अत्यंत एकांत अवस्था की कल्पना की जा सकती है। इसके विधानों में शिद्दत भी है और एहसास भी। “सर्द रात”, “आवारगी” और “नींद का बोझ” ये ऐसी तीन अवस्थाएं हैं जिनसे तन्हाई की तस्वीर बनती है और जब ये कहा कि “हम अपने शहर में होते तो घर गए होते” तो जैसे तन्हाई के साथ साथ बेघर होने की त्रासदी को भी चित्रित किया गया है। शे’र का मुख्य विषय तन्हाई और बेघर होना और अजनबीयत है। शायर किसी और शहर में है और सर्द रात में आँखों पर नींद का बोझ लिये आवारा घूम रहा है। स्पष्ट है कि वो शहर में अजनबी है इसलिए किसी के घर नहीं जा सकता वरना सर्द रात, आवारगी और नींद का बोझ वो मजबूरियाँ हैं जो किसी ठिकाने की मांग करती हैं। मगर शायर की त्रासदी यह है कि वो तन्हाई के शहर में किसी को जानता नहीं इसीलिए कहता है कि अगर मैं अपने शहर में होता तो अपने घर चला गया होता।
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chaman meñ rakhte haiñ kāñTe bhī ik maqām ai dost
faqat guloñ se hī gulshan kī aabrū to nahīñ
chaman mein rakhte hain kanTe bhi ek maqam ai dost
faqat gulon se hi gulshan ki aabru to nahin
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jaane kis moḌ pe le aa.ī hameñ terī talab
sar pe sūraj bhī nahīñ raah meñ saayā bhī nahīñ
jaane kis moD pe le aai hamein teri talab
sar pe suraj bhi nahin rah mein saya bhi nahin
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gar qayāmat ye nahīñ hai to qayāmat kyā hai
shahr jaltā rahā aur log na ghar se nikle
gar qayamat ye nahin hai to qayamat kya hai
shahr jalta raha aur log na ghar se nikle
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